News

Actions

इंटरनेट का भविष्य भारतीय है

Posted at 8:05 PM, Nov 26, 2018
and last updated 2018-11-27 03:37:05-05

जमना देवी को अपना पहला मोबाइल क़रीब एक साल पहले मिला था। यह उन छोटे से स्क्रीन और नंबर्ड कीपैड वाले फ़ोनों में से था जो एंड्रॉइड और आईफ़ोन के इस युग में तेज़ी से दुर्लभ होते जा रहे हैं।

भारत के राज्य राजस्थान में स्थित देवी का गांव आधुनिक बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर है। यह रेगिस्तान के बीच कुछेक घरों की एक शांत सी बस्ती है। दिन में केवल एक बस यहां से गुज़रती है, जो पचास मील दूर स्थित सबसे क़रीबी शहर से इसका एकमात्र संपर्क है।

उन्हें अपने बच्चों और रिश्तेदारों से बात करने की ख़ातिर नेटवर्क की दो लकीरें पाने के लिए अपने घर की छत पर चढ़ना पड़ता है। “वहां से मैं बात कर सकती हूं,” उन्होंने बताया। “कभी-कभी बात बन जाती है। वर्ना तो यह फ़ोन बेकार ही पड़ा रहता है।”

भारत के लगभग 90 करोड़ लोगों की तरह देवी ने भी न तो कभी स्मार्टफ़ोन इस्तेमाल किया है, और न ही इंटरनेट का उपयोग किया है। पहले से ऑनलाइन 50 करोड़ से ज़्यादा भारतीयों के साथ, उन करोड़ों लोगों को ऑनलाइन लाने की दौड़ में तकनीकी दुनिया के कई बड़े वैश्विक नाम शामिल हैं। और इस प्रक्रिया में वे इंटरनेट के भविष्य को आकार दे रहे हैं।

“दुनिया की आधी से कुछ ज़्यादा आबादी ऑनलाइन है, इसका मतलब है दुनिया के लगभग साढ़े तीन सौ करोड़ लोग इंटरनेट से नहीं जुड़े हैं,” भारत में गूगल के मैनेजिंग डायरेक्टर राजन आनंदन ने पिछले महीने एक इंटरव्यू में सीएनएन बिज़नेस को बताया था।

तो किस तरह से इन प्रयोक्ताओं को जोड़ा और इंटरनेट को उनके लिए उपयोगी बनाया जा सकता है?

“ये जवाब इसमें निहित हैं कि इन 90 करोड़ (भारतीयों) को कैसे जोड़ा जाए जो ऑनलाइन नहीं हैं,” आनंदन ने कहा।

करोड़ों भारतीय अभी भी इंटरनेट से दूर हैं, और अधिकांश स्मार्टफ़ोनों के ज़रिए इंटरनेट का प्रयोग करेंगे

असंबद्धों को जोड़ना

भारत इंटरनेट के उपभोक्ताओं में विस्फोटक वृद्धि देख चुका है, जिसे विशाल नए बाज़ारों को हथियाने की सिलिकॉन वैली की हड़बड़ी और देश के संरचनात्मक ढांचे के आधुनिकीकरण के लिए सरकारी निवेश ने हवा दी थी।

गूगल ने भारत भर में चार सौ से ज़्यादा रेलवे स्टेशनों में वाईफ़ाई सेवा स्थापित करने में मदद की है, और वह ग्रामीण भारतीय महिलाओं को इंटरनेट का उपयोग करना सिखाने के लिए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम भी चलाता है। फ़ेसबुक अपनी एक्सप्रेस वाइफ़ाई पहल के माध्यम से 20,000 हॉटस्पॉट स्थापित करना चाहता है जो लगभग 10 रुपए (0.14 डॉलर) प्रतिदिन पर उपभोक्ताओं को जोड़ेगा। सरकार की भारत भर में 250,000 हॉटस्पॉट स्थापित करने की योजना है। “मेरे विचार में, भौतिक संरचनात्मक ढांचे की जगह हमें डिजिटल संरचनात्मक ढांचे का निर्माण करना होगा,” भारत सरकार के एक वरिष्ठ नीति सलाहकार अमिताभ कांत का कहना है।

मगर निस्संदेह, भारत के ऑनलाइन उछाल में सबसे बड़ा योगदान है मुफ़्त इंटरनेट की पहल जिसे देश के सबसे समृद्ध व्यक्ति द्वारा लाया गया है। मुकेश अंबानी ने सितंबर 2016 में एक हतप्रभ कर देने वाले शुरुआती ऑफ़र के साथ 2000 करोड़ डॉलर का एक नया मोबाइल नेटवर्क, रिलायंस जियो, लॉन्च किया। नए उपभोक्ताओं को छह महीने के लिए मुफ़्त 4जी हाई-स्पीड इंटरनेट प्रदान किया गया। इसने मूल्य-युद्ध छेड़ दिया और अन्य मोबाइल सेवा-प्रदाताओं को अपनी सेवा दरें घटानी पड़ीं। अब, अपने लॉन्च के दो साल बाद जियो 25 करोड़ से ज़्यादा लोगों का उपभोक्ता आधार बना चुका है। और अंबानी की भविष्यवाणी है कि 2020 तक भारत “पूरी तरह से 4जी” हो जाएगा।

“भारत का प्रत्येक फ़ोन 4जी सक्षम फ़ोन होगा, और प्रत्येक उपभोक्ता 4जी संयोजकता हासिल कर सकेगा,” अक्तूबर में दिए एक भाषण में उन्होंने कहा था। “हम सब जगह सब लोगों और सब चीज़ों को जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

गोरख दान के लिए तो जियो ने एक नई दुनिया ही खोल दी है। यह छब्बीस वर्षीय व्यक्ति जमना देवी के गांव से क़रीब 40 मील दूर जैसलमेर शहर में पत्थर के सप्लायर का काम करता है। पांच महीने पहले उसने जियो का एक सिम कार्ड लिया था और फिर क़रीब 5,000 रुपए (68 डॉलर) में नोकिया का अपना पहला स्मार्टफ़ोन ख़रीदा। अब तो दान को व्हाट्सएप, जिसके भारत में सबसे ज़्यादा उपभोक्ता हैं, और यूट्यूब का चस्का लग गया है। अंबानी की कंपनी के प्रभाव को बताने के लिए वह एक बेहद भारतीय जुमले का प्रयोग करता है।

“जियो तो सबका बाप बन गया है।”

भारत के सुदूर गांवों में, सावल सिंह जैसे लोगों को फ़ोन पर बात करने के लिए पेड़ों पर चढ़ना पड़ता है।

इस बीच, सस्ता डाटा और स्मार्टफ़ोन लाखों शहरी भारतीयों को इंटरनेट से जोड़ रहे हैं।

प्रति सैकंड दो स्मार्टफ़ोन

अपने चालीस करोड़ उपभोक्ताओं के साथ भारत, चीन के बाद, दुनिया का सबसे बड़ा स्मार्टफ़ोन बाज़ार बन चुका है। मगर वे जनसंख्या का एक तिहाई भी नहीं हैं, और स्मार्टफ़ोन निर्माता शेष लोगों तक पहुंचने की दौड़ में लगे हैं।

इस समय सैमसंग और चीन के शाओमी बाज़ार पर हावी हैं, और दोनों ही लगातार बड़े होते जा रहे हैं — इस साल नई दिल्ली के बाहर सैमसंग ने, जैसा कि उसका दावा है, “दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल फ़ैक्टरी” बनाई है, जबकि शाओमी ने अपनी क्षमता को तीन गुणा बढ़ाया है और अब भारत में प्रति सैकंड दो उपकरण का उत्पादन कर सकती है।

“पश्चिम और चीन के विपरीत जहां लोग पहले ऑफ़लाइन थे, फिर डेस्कटॉप, लैपटॉप और फिर मोबाइल के माध्यम से ऑनलाइन हुए… लोग इन सारे चरणों को छोड़कर, स्मार्टफ़ोन के माध्यम से, ऑनलाइन न होने से सीधे ऑनलाइन हो गए,” शाओमी के भारत-प्रमुख मनु जैन ने मई में सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में कहा था।

ऑनलाइन होने में सबसे बड़ी बाधा स्मार्टफ़ोनों की क़ीमत है। सबसे सस्ते मॉडल भी अधिकांश भारतीयों की पहुंच से अभी भी बाहर हैं, जिनकी वार्षिक औसत आय डेढ़ लाख रुपए से भी कम है। और रुपए के मूल्य में गिरावट आने के कारण शाओमी ने क़ीमतें बढ़ा दी हैं।

अपने महंगे आईफ़ोनों के साथ एपल पांव जमाने के लिए संघर्ष करता रहा है, और भारतीय बाज़ार में उसकी वर्तमान हिस्सेदारी मुश्किल से 2% है। दूसरी ओर, ओपो और वीवो जैसे चीनी कंपनियों ने अच्छी-ख़ासी पैठ बना ली है, मगर उनके सबसे सस्ते स्मार्टफ़ोन भी लगभग 10,000 रुपए (137 डॉलर) के हैं।

गूगल के आनंदन बताते हैं कि एकदम बेसिक स्मार्टफ़ोन भी 4000 रुपए से ज़्यादा मूल्य का होता है, जबकि कीपैड फ़ोन को जिसे ज़्यादातर भारतीय अभी भी इस्तेमाल करते हैं, मात्र 900 रुपए में ख़रीदा जा सकता है।

“कल सुबह जब मैं जागूं और मुझे भारतीय इंटरनेट के लिए कोई कामना करनी हो, तो मैं कहूंगा कि वह कम क़ीमत में अच्छी गुणवत्ता वाला स्मार्टफ़ोन उपलब्ध होने की होगी,” वे कहते हैं। “अगर हम ऐसा कर सकें, तो मेरा मानना है कि रातोंरात हम भारत में उपभोक्ता आधार को दोगुना कर सकेंगे।”

इंटरनेट पर संवाद करने के लिए भारतीय वीडियो का अधिकाधिक प्रयोग कर रहे हैं।

‘इस ख़ज़ाने को आप कैसे मापते हैं?’

इस बीच, उन लाखों भारतीयों के सामने जिनके पास स्मार्टफ़ोन हैं, अनेक विकल्प आ खड़े हुए हैं| अमेज़न, ऊबर, और नेटफ़्लिक्स जैसे डिजिटल बाहुबली फ़्लिपकार्ट, ओला और हॉटस्टार जैसे देसी प्रतिद्वंद्वियों से मुक़ाबला कर रहे हैं।

अमेज़न ने अपने भारतीय व्यापार को विकसित करने के लिए 500 करोड़ डॉलर से अधिक की राशि आवंटित की है, और ऊबर ने चीन और दक्षिणपूर्व एशिया से निकलने के बाद एशिया में अपने भविष्य का दारोमदार भारत पर छोड़ा हुआ है। नेटफ़्लिक्स ने इस साल के शुरू में अपनी पहली मौलिक सीरीज़, “सेक्रेड गेम्स” रिलीज़ की, और इसकी एक दर्जन से ज़्यादा मौलिक सीरीज़ जल्द आने वाली हैं।

“भारत हमारे सबसे बड़े बाज़ारों में से एक है,” एशिया में नेटफ़्लिक्स की संचार-उपाध्यक्ष जैसिका ली ने बताया। “आप जनसंख्या की विशालता, इंटरनेट की पैठ और विकास के अवसर को देखें — चुनौती यह है कि आप इस ख़ज़ाने को कैसे मापते हैं?”

इंटरनेट के उछाल ने करोड़ों डॉलर के मूल्यांकन वाली अनेक नई भारतीय कंपनियों का भी निर्माण किया, जिन्होंने अपना अच्छा-ख़ासा मुक़ाम बना लिया है। ओला की टैक्सी-सेवा लगभग 110 — ऊबर से 80 अधिक — भारतीय शहरों में कार्यरत है। भारतीय ऑनलाइन रीटेल बाज़ार में अमेज़न की 32% हिस्सेदारी की तुलना में फ़्लिपकार्ट की अनुमानत: 40% हिस्सेदारी है। और भारत की अग्रणी डिजिटल भुगतान कंपनी पेटीएम ने आठ साल में 30 करोड़ से अधिक उपभोक्ता बना लिए हैं।

“हम ऐसी कंपनियां हैं जो इंटरनेट के युग में जन्मी हैं,” पेटीएम के सीईओ विजय शेखर शर्मा ने सीएनएन बिज़नेस को बताया। “मेरा मानना है कि इंटरनेट इस देश के सामाजिक और आर्थिक विकास का प्रमुख चालक बनेगा।”

अन्य वैश्विक कंपनियां भी डिजिटल अर्थव्यवस्था में पैसा डालकर भारत में विस्तार कर रही हैं।

जब वॉरेन बफ़ेट की बर्कशायर हैथवे ने इस वर्ष पेटीएम के शेयर प्राप्त किए — किसी भारतीय कंपनी में यह इसका पहला निवेश है — तो यह चीन की तकनीकी बाहुबली अलीबाबा और जापान के सॉफ़्टबैंक जैसे प्रोत्साहकों में शामिल हो गई जिसकी ओला में भी हिस्सेदारी है। फ़्लिपकार्ट का नियंत्रण अब अमेरिकी रीटेलर वॉलमार्ट के पास है, जिसने इस वर्ष के आरंभ में 77% शेयर के लिए एक लाख करोड़ रुपए का भुगतान किया था।

चीन की एक और बड़ी तकनीकी कंपनी टैनसेंट के पास फ़्लिपकार्ट और ओला दोनों के शेयर हैं। डिज़्नी ट्वेंटीफ़र्स्ट सैंचुरी फ़ॉक्स की अधिकांश हिस्सेदारी को ख़रीदने की अपनी डील के हिस्से के रूप में, भारत के शीर्षस्थ स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म हॉटस्टार और इसके 7.5 करोड़ से ज़्यादा मासिक सक्रिय सदस्यों को अपने हाथ में लेने की प्रक्रिया में है।

पहले भारत, बाद में दुनिया

भारी निवेश और तीव्र विकास के इस मादक मेल ने भारत को एक प्रयोगशाला में तब्दील कर दिया है, जहां उन अवधारणाओं और उत्पादों को आकार दिया जाता है जो भारत की सीमाओं से बहुत दूर इंटरनेट को आकार देंगी।

“जहां तक भारत की बात है, भविष्य तो यहां आ चुका है,” दक्षिण एशिया में फ़ेसबुक की सार्वजनिक नीति की निदेशक आंखी दास कहती हैं।

“पहले भारत” उत्पादों और विशेषताओं की एक श्रृंखला रही है जिन्हें बाद में दूसरे देशों में ले जाया गया।

ऊबर ने इस साल के शुरू में अपनी एप का कम बैंडविड्थ संस्करण ‘लाइट’ लॉन्च किया था जबकि डेटिंग एप टिंडर ने पहली बार भारत में एक फ़ीचर आरंभ किया जो बातचीत में पहल करने में महिलाओं को अधिक नियंत्रण प्रदान करता है। दोनों ही कंपनियां इन फ़ीचर्स को दूसरे देशों में भी ले जाने पर विचार कर रही हैं।

2011 में ही फ़ेसबुक अपनी वेबसाइट का ऐसा संस्करण लाकर जो बेसिक मोबाइल पर भी काम करता था, बरसों से भारत को परीक्षण स्थल की तरह प्रयोग करता आ रहा है। तब से यह मिश्रित सफलता के साथ भारत में अपनी सेवाओं के अनेक दूसरे फ़ीचर्स और संस्करण लाता रहा है।

“भारत हमारे लिए बहुत बड़ी प्राथमिकता है,” दास ने कहा। “यह हमेशा हमारे मिशन का केंद्र रहा है।”

भारत का कई अन्य तरीक़ों से भी कंपनियों पर बहुत गहरा प्रभाव रहा है। अमेज़न ने अपने एप को भारत की सबसे ज़्यादा लोकप्रिय भाषा हिंदी में शुरू किया है, और निकट भविष्य में इसकी योजना अन्य भारतीय भाषाओं को जोड़ने की भी है।

130 नए देशों में वैश्विक विस्तार के हिस्से के रूप में, नेटफ़्लिक्स सबसे पहले भारत में जनवरी 2016 में लॉन्च हुआ था। एक वर्ष से भी कम समय में यह दुनिया भर में अपने उपभोक्ताओं को कार्यक्रम डाउनलोड करने और उन्हें ऑफ़लाइन देखने की सुविधा प्रदान करने लगा।

इस वर्ष के शुरू में नेटफ़्लिक्स ने अपनी पहली मौलिक भारतीय सीरीज़ “सेक्रेड गेम्स” रिलीज़ की, और इसकी एक दर्जन से अधिक सीरीज़ जल्द आने वाली हैं।

हालांकि डाउनलोड करने की विशेषता ख़ासतौर से भारत के लिए नहीं थी, मगर ली का कहना है कि नेटफ़्लिक्स को उभरते बाज़ारों के अनुकूल बनाने में भारत ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की है। “डाउनलोड्स, मोबाइल कंप्रैशन, वीडियो के लिए फ़ाइल के आकार को छोटा बनाना ताकि वे बेहतर तरीक़े से प्रवाहित हो सकें, बफ़रिंग कम करना… ये सब भारत जैसे बाज़ारों में होने से ही हुआ है,” वे आगे कहती हैं।

यूट्यूब और गूगल मैप्स जैसे ऑफ़लाइन संस्करणों को लाकर और भारत की दर्जनों क्षेत्रीय भाषाओं में बेहतर काम करने के लिए गूगल ट्रांसलेट का विस्तार करके गूगल ख़ासतौर से सक्रिय रहा है।

“प्रत्येक उत्पाद में हम यह देख रहे हैं कि जब हम अपने उत्पादों को वास्तव में भारत के लिए बनाते हैं या जब हम वास्तव में उन्हें इन भारतीय उपभोक्ताओं के लिए आकार देते हैं, तो वे बख़ूबी काम करते हैं,” आनंदन ने कहा।

पहला ‘आवाज़ से खोज’ इंटरनेट

भारत के लोग इंटरनेट के प्रयोग के तरीक़े तक को आकार दे रहे हैं, जिसमें गूगल के बिज़नेस की आधारशिला — जानकारी की खोज — भी शामिल है।

“ये नए प्रयोक्ता टैप या टाइप करने के बजाय इंटरनेट से बात करना पसंद करते हैं, इसलिए भारत में आवाज़ से खोज प्रश्न प्रति वर्ष 270% बढ़ रहे हैं जो कि हैरतअंगेज़ है,” आनंदन ने आगे कहा। “हम वीडियो इंटरनेट तो पहले से ही हैं, और अगर आप मुझसे पूछें तो मैं कहूंगा कि हम दुनिया का पहले आवाज़ से खोज इंटरनेट बनेंगे।”

भारत के स्टार्टअप भी दूर तक नज़र लगाए हुए हैं। पिछले वर्ष में ओला ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और यूनाइटेड किंगडम तक में पहुंच गया है। “भारत में काम करने के लिए बड़ी कठोर प्रतिस्पर्द्धा चाहिए होती है,” नवंबर के आरंभ में ओला के सामरिक उपक्रम के प्रमुख आनंद शाह ने सीएनएन बिज़नेस से कहा था। “अगर आप यह भारत में कर सकते हैं, तो कहीं भी कर सकते हैं।”

पेटीएम कनाडा में काम कर रहा है, और इस वर्ष जापान में ऑनलाइन भुगतान आरंभ करने के लिए सॉफ़्टबैंक के साथ साझेदारी कर रहा है। “एक बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार कर लेने के बाद हम निश्चित रूप से यूएस के मार्केट में जाना चाहेंगे,” पेटीएम के शर्मा कहते हैं।

दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ऑनलाइन आबादी होने के नाते यह तो निश्चित है कि भारतीयों का प्रभाव भी बहुत बड़ा होगा, कांत कहते हैं। और चीनी इंटरनेट प्रयोक्ताओं के विपरीत, वे वैश्विक प्लेटफ़ॉर्मों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

“ट्विटर पर सबसे अधिक नागरिक भारतीय होंगे, फ़ेसबुक पर सबसे अधिक नागरिक भारतीय होंगे,” उन्होंने कहा।

जल्द ही यूट्यूब पर दुनिया के किसी भी अन्य चैनल से ज़्यादा सब्सक्राइबर शायद बॉलीवुड के म्युज़िक लेबल टी-सीरीज़ के होंगे।

भारत में किसी भी अन्य देश की तुलना में 25 वर्ष से कम उम्र के लोग हैं, और तकनीकी कंपनियां उन्हें ऑनलाइन लाने के लिए दौड़ रही हैं।

विनियमन को ठीक करना

विकास की बेतहाशा गति विनियमन — और अन्य लागू किए गए बदलावों — को भी जन्म दे रही है जो इस बात को आकार दे सकता है कि अन्य देशों में लोग इंटरनेट को कैसे अनुभव करें।

मसलन, अपने प्लेटफ़ॉर्म पर ग़लत जानकारी के लिए व्हाट्सएप की तीखी आलोचना की गई है, जिसका 20 करोड़ भारतीय इस्तेमाल करते हैं।

वायरल हुए झूठे संदेशों को पिछले साल सारे भारत में भीड़ की हिंसा से जोड़ा गया है, जिनमें बच्चों के अपहरण की झूठी अफ़वाहों के कारण भीड़ द्वारा एक दर्जन से अधिक हत्याएं की गईं। सरकार ने फ़ेसबुक के स्वामित्व वाली इस कंपनी से झूठी जानकारी फैलाने में इसकी भूमिका के लिए बार-बार बात की है और इससे अपने काम करने के तरीक़े में बदलाव लाने को कहा है।

कुछ मांगों के प्रति व्हाट्सएप का जवाब नकारात्मक रहा है, जिनमें व्यक्तिगत संदेशों का पता लगाना भी शामिल है। लेकिन इसने एक लेबल बढ़ा दिया है जो यह दर्शाता है कि मैसेज सेंडर ने ख़ुद नहीं लिखा बल्कि फ़ॉरवर्ड किया है, और यह सीमित कर दिया है कि एक मैसेज एक बार में कितनी चैट्स पर फ़ॉरवर्ड किया जा सकता है।

ये दोनों फ़ीचर भारत में आरंभ किए गए और फिर बाद में शेष दुनिया में लाए गए। इनका इस प्लेटफ़ॉर्म पर झूठी ख़बरों और ग़लत जानकारी को रोकने में “महत्वपूर्ण प्रभाव” रहा है, दास ने कहा, और साथ ही यह भी कहा कि ये ब्राज़ील के हालिया चुनाव सहित वैश्विक परिदृश्य में भी प्रभावी रहे हैं।

“मेरा ख़्याल है कि इंटरनेट की स्थिरता और विकास का दारोमदार इस पर रहेगा कि लोग इस पर कितना सुरक्षित महसूस करते हैं,” उन्होंने कहा।

भारतीय इंटरनेट पर टाइप करने की जगह बोलना पसंद करते हैं, और देश की दर्जनों भाषाएं वैश्विक तकनीक के लिए अगली बड़ी चुनौती हैं।

और अधिक विनियमन जिन पर काम चल रहा है, वैश्विक इंटरनेट के अगले सीमांत के रूप में भारत की स्थिति को ख़तरे में डाल सकते हैं।

डिजिटल भुगतान पर प्रतिबंध पहले ही व्हाट्सएप और गूगल को प्रभावित कर चुके हैं, और ई-कॉमर्स पर प्रस्तावित नियम अमेज़न के भारतीय कारोबार को नुक़्सान पहुंचा सकते हैं। वैश्विक तकनीकी कंपनियों का कहना है कि यह प्रस्तावित क़ानून कि भारतीय यूज़र का डाटा भारत में ही स्टोर किया जाए, उनके तेज़ रफ़्तार विकास पर ब्रेक लगा सकता है।

“मेरा विचार है कि किसी भी क़िस्म का डाटा स्थानीयकरण देशों में इंटरनेट अर्थव्यवस्था और नवीनीकरण को धीमा करता है,” गूगल के आनंदन ने कहा। “हम आशा करते हैं कि भारत प्रगतिशील होगा।”

‘हम शुरुआत में हैं’

विनियमन पर बहस भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, जिसे चीन द्वारा अपने विशाल इंटरनेट को वैश्विक कंपनियों से दूर रखने के फ़ैसले से भारी फ़ायदा हुआ है।

गूगल और फ़ेसबुक को चीन के 80 करोड़ इंटरनेट प्रयोक्ताओं से काट दिया गया है, जिसके नतीजे में उन्होंने भारी संसाधन भारत की ओर संचालित कर दिए। चीनी कंपनियां भारत की खुली अर्थव्यवस्था से भी फ़ायदा उठा रही हैं, और स्मार्टफ़ोन की बिक्री व देश की बड़ी स्टार्टअप कंपनियों में निवेश करने के क्षेत्रों में मज़बूती हासिल कर रही हैं।

“हमारा देश किसी भी इंटरनेट प्लेटफ़ॉर्म की सफलता के लिए आवश्यक जो अवसर और विविधता प्रदान करता है… मैं उसे लेकर अत्यधिक आशावान हूं,” फ़ेसबुक की दास ने कहा।

पेटीएम के सीईओ शर्मा का कहना है कि वैश्विक तकनीकी कंपनियों को बहुत ज़्यादा आज़ादी दी गई है। उनका तर्क है कि जो लोग देश में इंटरनेट के उछाल से लाभ उठा रहे हैं उनका कर्तव्य बनता है कि वे डाटा को भारत में स्टोर करें। “जब हमारा डाटा देश से बाहर नहीं जाएगा तब हम जानेंगे कि डाटा कौन इस्तेमाल कर रहा है, किसलिए कर रहा है या किसलिए नहीं कर रहा है,” उन्होंने कहा। “आपका बिज़नेस यहां है, आपके उपभोक्ता यहां हैं, बाज़ार यहां है। तो क्यों नहीं?”

जैसे-जैसे और भारतीय इंटरनेट से जुड़ते जाएंगे, वे दुनिया भर में इंटरनेट के प्रयोग के तरीक़े को आकार देंगे।

सरकार जिस पक्ष पर भी प्रहार करे, बाज़ार तो बढ़ता ही जाएगा — और वो भी तेज़ी से। गूगल के आनंदन का अनुमान है कि अधिक से अधिक 2022 तक भारत में 80 करोड़ प्रयोक्ता हो जाएंगे। “तो वास्तव में, हम चीन जितना प्रयोक्ता आधार प्राप्त करने से तीन से चार साल दूर हैं,” उन्होंने कहा।

इसका अर्थ यह है कि तकनीकी उद्योग के लिए भारत विश्व का ख़ज़ाना है।

“वास्तविकता यह है कि आज भारत का केवल 30% ऑनलाइन है। वास्तविक भारत जिसे इंटरनेट की ज़रूरत है, जो इंटरनेट से फ़ायदा उठा सकता है, वह अभी तक ऑनलाइन नहीं है,” आनंदन ने आगे कहा। “हम कई मायनों में भारतीय इंटरनेट की शुरुआत में हैं।”